Saturday 19 February 2011

मेरी बेटी

I wrote this poem on the 16th b'day of my 2nd daughter. I want to dedicate this poem to all those mothers who make the decison for female foeticide at some point in their lives.

१६ साल - जैसे कल की ही बात हो ,
१९९१  - डॉक्टर की घोषणा  - "you are  pregnant"
आकाश जैसे सर पर गिरा हो,
मैं विस्मित , अचरज और उदासी से भरी बैठी सोचती, 
"१० महीने की बेटी गोद में, और अब दूसरी".

फिर मन को समझाया - "बेटा हो गया तो परिवार सम्पूर्ण "
ईश्वर की इच्छा   समझ कर इसे अपनाया
लेकिन फिर डर के एक झोकें ने मुझे सताया
"क्या होगा अगर फिर से बेटी ",
सोच कर दिल बहुत घबराया
डॉक्टर  को मैंने अपना फैसला सुनाया
डॉक्टर को सारा चक्कर समझ में आया
उसने खूब तस्सली से हमें समझाया "और बच्चे भगवान की देन है" ,
कह कर अपना अनुग्रह दोहराया

मैंने उत्सुकता के और-छोर में अपना नौ महीना बिताया
अन्दर से मन बहुत घबराया, और फिर वो वक्त भी आया
१0 मार्च १९९२  - रात के दस बजे ,
जब मेरी बेटी ने दुनिया  में अपना अस्तित्व पाया .
पति की ख़ुशी और बेटी की नाजुकता ने मुझे खुशियों के हिंडोलों   में झुलाया ,
देखते ही देखते मेरी छिपकिली  सी लम्बी और लाल रंग वाली बेटी ने खूबसूरती और प्यार  के अलग -अलग अंदाज़ दिखाएं
और मुझे माँ होने के  सारे गौरव दिलवाएं .
बेटी की समझदार, प्यार और संवेदना से भरपूर बातों ने हमें खूब रूलाया, खूब हंसाया.

अपनी बिटिया के बारी में और क्या कहूं , बस
धन्यवाद करती हूँ उस ईश्वर का जिन्होंने हमें बेटी तो दिया , पर खूब दिया .

1 comment:

  1. I am lucky to have a mother like you, mom. ♥
    It's a beautiful poem,
    and you're amongst the most talented women I know. I hope you're talent in poetry will one day rub off on me. You should write some more! You'll definitely find a reader in me. :)

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