Sunday 16 January 2011

AURAT KE NAYE AAYAAM - औरत के नये आयाम

औरत हूँ मैं    -  घर की साज-सज्जा में अपने आप को पूर्ण समझती
बच्चों के आस-पास रह कर अपनी ममता की किरण बिखेरती
पति की सेवा में ही आनंद की अनुभूति करती  ,
सास- ससुर की अच्छी या कड़वी बातों को ही अपना संसार समझती ,

वही औरत हूँ मैं -  हाँ वही हूँ मैं
पर आज घर की चारदीवारी से बाहर निकल चुकी हूँ मैं
अपनी क्षमता की मिसाल बाहरी दुनिया में साबित कर चुकी हूँ मैं  

अपने माँ होने के एहसास के साथ घर की जिम्मेदारियों का एहसास भी है मुझे
अपने अस्तित्व को अपनी कुशलता  से पूर्ण करने की प्यास है मुझे
कौन सा क्षेत्र  है जहाँ मैंने अपना रंग नहीं जमाया
आदमियों के कंधा से कंधा नहीं मिलाया

मैं अगर एक कोमल एहसास हूँ , तो ज्वाला भी हूँ
सती अन्शुया हूँ , तो निक्की हेली  और इंदिरा नूई भी हूँ .
मैं अगर ताकत हूँ, तो विन्ध्वंश भी हूँ .
मैं गीत हूँ . तो बिजली भी हूँ .

जिन्दंगी के हर चैलेंजे को स्वीकार करने की क्षमता है मुझे
घर-बाहर दोनों को सँभालने की ताकत है मुझे
मेरे इस बदलते तेवर से आदमी ही नही, मैं खुद भी बहुत हैरान हूँ

मैं वो शक्ति हूँ , जो चाहे तो बारिश की बूँद की तरह तृप्त कर दे
और न चाहे तो nuclear bomb की तरह तबाह कर दे .

दोस्तों, मैं दासता के पन्नों से बाहर निकल चुकी हूँ
और आनेवाले समय के लिए इतिहास लिख रही हूँ .

1 comment:

  1. कही मैंने पढ़ा था कि विकास कि दौड़ में या नारी चेतना कि आड़ में नारी को उसी तरह इस्तेमाल किया जा रहा है बस सिर्फ तरीके बदल गए हैं .
    ज्यादा दूर नहीं अपने घर कि कामवाली के बारे में जानकारी लें . उनके पति निखट्टू और सुविधा भोगी ही मिलेंगे. विकसित वर्ग में यह उदाहरण जरा सटीक नहीं होगा पर क्या नारी को अब भी ज्यादा दायित्व नहीं उठाने पड़ते ? और उनके जीवन साथी, पति या लिविंग इन मित्र उनका शोषण नहीं करते?
    मेरे विचार से नारी को अपने नारीगत गुण कि तत्परता से रक्षा करनी चाहिए . नारी के लिए पुरुषोचित आचरण उनका गुणगान नहीं अपितु अपमान है.
    आखिर अंत में मारी तो तितली ही जाती है

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